Aravalli Hills: सुप्रीम कोर्ट ने अरावली हिल्स को बचाने के लिए एक साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय लिया है। 29 दिसंबर 2025 को हुई एक विशेष सुनवाई में, अदालत ने अपने पहले के फैसले पर रोक लगा दी, जो अरावली को 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों तक सीमित करता था।
1. महत्वपूर्ण घटनाक्रम
सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन बेंच (CJI सूर्यकांत, जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह) ने 20 नवंबर 2025 को उस निर्णय को ‘ठंडे बस्ते’ (Abeyance) में डाल दिया, जो सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘ऊंचाई-आधारित परिभाषा’ को मान्यता देता था।
अदालत का तर्क: कोर्ट ने माना कि इस परिभाषा से अरावली का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 90%) संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकता है, जिससे वहां खनन माफियाओं का रास्ता साफ हो जाता। पर्यावरणविदों और जनता के भारी विरोध के बाद कोर्ट ने इस मामले पर खुद संज्ञान लिया।
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2. विवाद की जड़: ‘100 मीटर’ का नियम
20 नवंबर के फैसले में केंद्र सरकार की एक समिति की सिफारिश को माना गया था, जिसके अनुसार:
केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली संरचनाओं को ही ‘अरावली पहाड़ी’ माना जाना था।
चिंता: राजस्थान में ही लगभग 12,081 पहाड़ियों में से केवल 1,048 पहाड़ियाँ ही इस मानक पर खरी उतर रही थीं। बाकी छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए खोला जा सकता था।
पारिस्थितिक खतरा: ये छोटी पहाड़ियाँ थार रेगिस्तान को दिल्ली और गंगा के मैदानों की ओर बढ़ने से रोकने में ‘ग्रीन बैरियर’ का काम करती हैं।
3. सुप्रीम कोर्ट के 5 कड़े सवाल और निर्देश
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने सरकार से कई तीखे सवाल पूछे और सख्त निर्देश जारी किए
नोटिस जारी: केंद्र सरकार और चार राज्यों (हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, और दिल्ली) को नोटिस जारी कर जवाब माँगा गया है।
नई विशेषज्ञ समिति: कोर्ट ने एक नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनाने का आदेश दिया है, जो नौकरशाहों के बजाय डोमेन विशेषज्ञों (वैज्ञानिकों और भूवैज्ञानिकों) से बनी होगी।
खनन पर रोक: अरावली क्षेत्र में किसी भी नए खनन पट्टे (New Mining Leases) के आवंटन पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है।
संरचनात्मक अखंडता: कोर्ट ने पूछा कि क्या 100 मीटर की ऊंचाई की परिभाषा अरावली की पारिस्थितिक निरंतरता (Ecological Continuity) को नष्ट कर देगी?

अगली सुनवाई: इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था का संतुलन
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि खनन से राजस्व मिलता है, लेकिन पारिस्थितिक सुरक्षा (Ecological Security) के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने ‘रेगुलेटरी लैकुना’ (नियामक खामी) की जांच करने की बात कही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अरावली के नाम पर रेगिस्तान का विस्तार न हो।
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